क्यूं होते है बलात्कार ?
ये कविता आज के समाज को दर्शाता है जहां रेप, बलात्कार आम हो गए है।
क्या है वो प्यास जो भुजती नहीं
क्या है वह आरजो जो मिटती नही,
क्या आज भी मौसम में बदलाव नही?
क्या आज भी लड़कियां बेदाग नही?
सुना था मैंने हम अज़ाद है पंछियों की तरह,
पर आज भी सेहमें है उन पिंजरों में बंद तस्वीरों की तरह।
एक श्क्स धीरे से आता है
हमारा वजुद मिटा जाता है
अपनी ही प्यास के लिए
उसको तड़पता हुआ छोड़ जाता है।
काश हम आज़ाद हो पाते ऐसी दर्णदगी से,
काश वो समझ पाते ये जो प्यास आज भुजाई है,
किसी की ज़िन्दगी में तुफान का सेलाब लाई है।
वो खुद तो गुम हो जाते है अपनी ही दुनिया में,
दिल तो उसका चकनाचुर होता है,
जो इज्ज़त के साथ अपनी बेटी भी दफनाता हैं।
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